Shagun Ka Sikka : अगर शगुन का एक रुपए को नहीं दे तो होगा बड़ा कांड, जाने सच्चाई
Shagun Ka Sikka अगर शगुन का एक रुपए को नहीं दे तो होगा बड़ा कांड, जाने सच्चाई, हमारे घर मे कोई प्रोग्राम होता है तो शुगून के ऊपर 1 रुपए वहीं अगर ये एक रुपया न दिया जाए तो क्या अनर्थ हो सकता है। नहीं तो चलिए जानते हैं इसके पीछे की पूरी सच्चाई...

SB News Digital Desk : Shagun Ka Sikka अगर शगुन का एक रुपए को नहीं दे तो होगा बड़ा कांड, जाने सच्चाई, हमारे घर मे कोई प्रोग्राम होता है तो शुगून के ऊपर 1 रुपए वहीं अगर ये एक रुपया न दिया जाए तो क्या अनर्थ हो सकता है। नहीं तो चलिए जानते हैं इसके पीछे की पूरी सच्चाई...
शादी हो या कोई और मांगलिक कार्यक्रम, इनमें उपहारों का दौर जरूर चलता है। मांगलिक कार्यक्रम में शामिल होने आए लोग बधाई और आशीर्वाद के तौर पर उपहार में तरह-तरह की चीजें देते हैं। इन्हीं उपहारों में एक है शगुन की राशि यानी नेग। पीढ़ियों से चली आ रही इस परंपरा में लोग उपहार के तौर पर कुछ राशि देते हैं। खास बात यह है कि यह राशि हमेशा 11, 21, 51, 101 जैसी विषम संख्या में होती है। यानी जितने भी पैसे दिए जाएं उसमें एक रुपया जोड़ दिया जाता है। अधिकतर लोग इसे परंपरा का हिस्सा मानकर निभाते हैं, लेकिन इसके पीछे कई मान्यताएं हैं।
शुभ-अशुभ से जुड़ी मान्यताओं की मानें तो शगुन की राशि को बढ़ाकर देना हमेशा से शुभ माना जाता रहा है। पुराने दौर में किसी शुभ कार्य में 20 आना यानी सवा रुपये देने की परंपरा थी। पुराने दौर में एक रुपये को 16 हिस्सों में बांटा जाता था।
इसलिए 50 पैसे को अठन्नी और 25 पैसे को चवन्नी कहा जाता है। कुछ बढ़ाकर देने की परंपरा के हिसाब से ही शगुन में एक रुपया देने की जगह इसमें चार आने बढ़ाकर सवा रुपये दिए जाते थे।
इससे शगुन पाने वाले के मन में यह भाव भी जाता है कि शगुन देने वाले ने उसे कुछ अधिक देने का प्रयास किया है। जिस तरह हमारे प्रियजन एक रुपये के रूप में हमें कुछ ज्यादा देने का प्रयास कर रहे हैं, ईश्वर उस भावना को समझकर हम सभी को आशा से अधिक आशीर्वाद देंगे। शुभ-अशुभ के साथ इस परंपरा से कई मनोवैज्ञानिक पहलू भी जुड़े हैं।
ऐसा माना जाता है कि सम संख्या में कुछ जोड़ देना ज्यादा होने का अनुभव देता है। इसे ऐसे समझा जा सकता है कि अगर किसी को 101 रुपये दिए जाएं तो ऐसा लगता है कि यह 100 रुपये से एक ज्यादा है, लेकिन इसकी जगह 99 रुपये दिए जाएं तो ऐसा लगेगा कि 100 रुपये में एक रुपया कम है।
ऐसे में शगुन में 11, 21, 51, 101 रुपये देने से यह अहसास होता है कि किसी व्यक्ति ने ज्यादा ही दिया है। इसके अलावा एक रुपया जोड़कर देना यह भी बताता है कि छोटी चीज किसी बड़ी चीज से जुड़ जाए तो वह और बड़ी हो जाती है। ऐसे में एक रुपया भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जितनी कि बाकी राशि और जीवन में किसी को भी छोटे-बड़े के तराजू पर न तौलकर हर किसी का बराबर सम्मान करना चाहिए।
अंकगणितीय पहलू की बात करें तो सम संख्या दो हिस्सों में विभाजित हो जाती है, जबकि विषम संख्या दो भाग में पूरी तरह विभाजित नहीं होती है। अगर विषम संख्या को विभाजित करें तो कुछ न कुछ शेष रह जाता है। मान्यताओं के अनुसार एक रुपया जोड़कर नेग देने के पीछे यह अंकगणितीय पहलू भी है।
इसके जरिए यह संदेश जाता है कि जिस तरह नेग में दी गई रकम को विभाजित करने के बाद भी कुछ न कुछ शेष रहेगा, उसी तरह किसी प्रिय को दी जाने वाली शुभकामनाएं, आशीर्वाद और प्रेम भी हमेशा बचा रहे।
इसी अंकगणितीय पहलू की वजह से ही किसी शोक के मौके पर अनुष्ठान में चढाई जाने वाली राशि में एक रुपया अलग से नहीं रखा जाता है। हमेशा 10, 20, 50, 100 यानी जोड़े में रुपये चढ़ाए जाते हैं। इससे यह संदेश जाता है कि जो भी दिया गया है वह पूरा का पूरा विभाजित हो जाए। इसी तरह दुख भी मुक्ति पाकर विभाजित हो जाए कभी कुछ शेष न रहे।
ज्योतिषीय और धार्मिक मान्यताओं में भी शगुन को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। ज्योतिषीय मान्यताओं के हिसाब से पैसे का लेन देन दो ग्रहों गुरु और शुक्र का प्रतीक है। किसी भी शुभ काम की शुरुआत में इन दोनों ग्रहों का आशीर्वाद लेना बहुत जरूरी माना जाता है।
गुरु समृद्धि का कारक है, इसलिए शगुन देने से घर में समृद्धि बनी रहती है। वहीं, शगुन लेने से शुक्र प्रसन्न होते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार धन और धातु को लक्ष्मी माता से जोड़ा जाता है और सिक्का धातु का बना होता है इसलिए भी मांगलिक कार्यक्रमों में नोट के साथ सिक्का देना शुभ माना जाता है।
हिंदू धर्म में विषम अंकों को सम अंकों के मुकाबले ज्यादा शुभ माना जाता है। इसे सप्त ऋषि, नौ देवियां, नव गृह, शादी के सात फेरे और सात वचनों से समझा जा सकता है। यहां तक कि मांगलिक कार्यों में कलाई पर बांधा जाने वाला कलावा भी विषम संख्या में ही घुमाया जाता है।
शगुन में एक रुपया जोड़कर देने के पीछे एक मान्यता यह भी है कि शून्य संपूर्णता यानी मुक्ति का प्रतीक है, जबकि एक आरंभ का संकेतक है। शादी जैसे मांगलिक कार्य नए रिश्ते की शुरुआत होते हैं और शगुन मे दी जाने वाली राशि में शून्य आ जाए तो वह पूर्ण होकर मुक्ति का भाव देती है।
वहीं, हिंदू धर्म एक ईश्वर और उसकी अनंतता की शिक्षा भी देता है। इसलिए एक अंक को अनंतता का भी प्रतीक माना गया है। यह भी कहा जाता है कि एक के बढ़ने की संभावनाएं अनंत हैं।
ऐसे में पुराने दौर से एक रुपया जोड़कर नेग देने का रिवाज है, ताकि इसके जरिए नई शुरुआत और आगे बढ़ते रहने का संदेश मिले। अब शगुन की राशि सवा रुपये से बढ़कर हजारों-लाखों तक पहुंच गई है, लेकिन इन्हीं मान्यताओं की वजह से एक रुपया जोड़कर देने की परंपरा आज भी कायम है।