Father's Day: 'वो टॉफी का रैपर आज भी मेरे पास है'

“याद नहीं पर जब से मैं थोड़ा बड़ा हुआ तब से सिर्फ उन्हीं की एक आवाज मेरा पसीना निकाल देती थी। रोज सुबह जब वह मुझे बस स्टॉप तक छोड़कर आते थे, तब मुझे ये नहीं पता था कि वह तो खुद बसों में धक्के खाते थे। ये बात उस दौरान की है जब मैं …
 
Father's Day: 'वो टॉफी का रैपर आज भी मेरे पास है'


“याद नहीं पर जब से मैं थोड़ा बड़ा हुआ तब से सिर्फ उन्हीं की एक आवाज मेरा पसीना निकाल देती थी। रोज सुबह जब वह मुझे बस स्टॉप तक छोड़कर आते थे, तब मुझे ये नहीं पता था कि वह तो खुद बसों में धक्के खाते थे। ये बात उस दौरान की है जब मैं अपनी उम्र को खुलकर जी रहा था। मेरे पापा हम सबके लिए खून-पसीना एक करते थे। चाहे कुछ भी हो जाए, वह हमारे लिए कभी टॉफी लाना नहीं भूलते थे। भले ही वह अंदर से कितनी भी परेशानी और दुख झेल रहे हों, लेकिन हमारे सामने हमेशा हंसते और मुस्कुराते रहते थे। हालांकि, एक दिन ये खुशी गम में बदल गई।

पापा काम के सिलसिले में शहर से बाहर गए हुए थे। मुझे अच्छे से याद है उस दौरान सर्दी की छुट्टियां चल रही थीं और मैं क्रिकेट खेलकर वापस आया ही था कि तभी फोन की घंटी बजी। मुझे लगा पापा का कॉल होगा और मैंने भागते हुए फोन उठा लिया। हालांकि, दूसरी ओर से किसी और की आवाज आई। उन्होंने बोला बेटा मम्मी से बात करवाओ। मम्मी को मैंने किचन से बुलाया और वह आटे वाले हाथों के साथ बाहर आईं व फोन लिया। उन्होंने जैसे ही बात की, वह जम सी गईं और उनकी आंखों से आंसू बहने लगे। उसी समय छोटे भाई ने मुझे अंदर बुलाया और मैं वहां से चला गया।

लगा जैसे मेरी पूरी दुनिया खत्म हो गई
मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। कुछ ही देर में दादी, चाचा-चाची सभी घर में आने लगे। मुझे अंदर से एहसास होने लगा कि कुछ तो हुआ है, लेकिन मैं ये नहीं समझ पा रहा था कि क्या हुआ है? फिर जो हुआ मुझे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो पाया। सफेद कपड़े में लिपटे एक लंबे चौड़े शख्स को चार लोग मेरी घर की दहलीज से अंदर ला रहे थे। और उस दिन लगा जैसे मेरी पूरी दुनिया ही खत्म हो गई। इसके साथ मेरा बचपना भी खत्म हो गया।

खेलने की उस उम्र में छोटे भाई और मां की जिम्मेदारी मुझ पर आ गई। रंग-बिरंगे कपड़े पहनने वाली मेरी मां बिन मंगलसूत्र मेरे सामने खड़ी थी। छोटे भाई को उस समय कुछ समझ भी नहीं थी। जिस पिता का मैं हाथ पकड़कर चला था, उन्हें मैं मुखाग्नि दे रहा था। उनकी दी आखिरी टॉफी के कागज को मैंने कूड़ेदान में से ढूंढकर निकाला।

मैं आपको हर दिन याद करता हूं पापा
इस बात को अब 5 साल हो चुके हैं। मैं हर रोज उनकी तस्वीर के सामने जाकर खड़ा हो जाता हूं और उन्हें मां व छोटे भाई का हाल बताता हूं। इस दौरान मैं उन्हें बताता हूं कि जिंदगी में क्या चल रहा है और सवाल भी पूछता हूं। मुझे पता है कि आज जिस जगह भी मेरे पापा होंगे, उन्हें इस बात की खुशी जरूर होगी कि उनका बेटा आज कितना बड़ा हो गया और वह बिना मदद के घर संभालने लगा है।

पापा की बहुत याद आती है, मगर मां के सामने दिखा नहीं सकते। उनकी हालत काफी नाजुक रहती है। पापा के कपड़े देख वह रो लेती हैं। इस वजह से कभी-कभी मैं कमरे में जोर से गाने चलाकर फूट-फूटकर रो लेता हूं। पापा आपको मैं हर रोज याद करता हूं।”-अंकित मिश्रा

[Content Contribution: Prakhar Srivastava (Intern)]



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