भारत में मुद्रा का नियंत्रण और प्रबंधन एक जटिल प्रक्रिया है, जिसमें भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) और केंद्र सरकार की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। RBI को 500 रुपये तक के नोट छापने का अधिकार है, जबकि एक रुपये का नोट भारत सरकार की ओर से छापा जाता है। नए नोट और सिक्के जारी करने या पुराने को बंद करने का निर्णय RBI और सरकार द्वारा संयुक्त रूप से लिया जाता है।
नोट छापने की प्रक्रिया
RBI नोटों की आवश्यकता का आकलन करता है और फिर केंद्र सरकार से स्वीकृति लेता है। इसी तरह, सरकार भी नए नोट जारी करने या पुराने को बंद करने से पहले RBI से परामर्श करती है। उदाहरण के लिए, 2016 में 500 और 1000 रुपये के नोट बंद किए गए और 2023 में 2000 रुपये के नोट को चलन से बाहर किया गया।
सिक्कों का महत्व और उनका दुरुपयोग
भारतीय मुद्रा में सिक्कों का भी महत्वपूर्ण स्थान है। हाल ही में, 5 रुपये के सिक्के को लेकर एक बड़ा बदलाव देखा गया। पुराने 5 रुपये के मोटे सिक्कों का निर्माण बंद कर दिया गया और उनकी जगह नए, पतले और सुनहरे रंग के सिक्के लाए गए।
पुराने 5 रुपये के सिक्कों का दुरुपयोग
इस बदलाव के पीछे एक गंभीर कारण था। पुराने 5 रुपये के सिक्कों की धातु मूल्य (metal value) उनकी अंकित मूल्य (face value) से अधिक थी। इसका दुरुपयोग कर कुछ लोग इन सिक्कों को पिघलाकर ब्लेड बना रहे थे। यह समस्या विशेष रूप से बांग्लादेश में देखी गई, जहां एक सिक्के से 6 ब्लेड बनाई जा सकती थीं, जिन्हें 12 रुपये में बेचा जा सकता था।
RBI द्वारा उठाए गए कदम
जब यह समस्या सामने आई, तो RBI ने तत्काल कार्रवाई की। नए 5 रुपये के सिक्के पतले बनाए गए और उनकी धातु संरचना बदल दी गई। इससे सिक्कों के दुरुपयोग और कालाबाजारी पर रोक लगी।
भारतीय मुद्रा प्रणाली का प्रबंधन एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। RBI और सरकार लगातार इस बात पर नज़र रखते हैं कि मुद्रा का उचित उपयोग हो और उसका दुरुपयोग न हो। 5 रुपये के सिक्के का उदाहरण दिखाता है कि कैसे छोटे से बदलाव भी बड़े आर्थिक प्रभाव डाल सकते हैं। यह भारतीय अर्थव्यवस्था की जटिलता और उसके प्रबंधन में आने वाली चुनौतियों को भी दर्शाता है।