कोटा । नगर निगम द्वारा श्वानों का बधियाकरण व टीकाकरण कराने के बाद भी न तो इनकी संख्या में कमी नजर आ रही है और न ही इनके द्वारा लोगों को काटने के मामलों में। श्वानशाला बनने के बाद से अब तक कोटा दक्षिण निगम करीब 12 हजार से अधिक श्वानों का बधियाकरण करवा चुका है। उसके बावजूद लोगों को इनकी स्थायी समस्या से निजात नहीं मिल पाई है। शहर का कोई भी मौहल्ला हो या मुख्य मार्ग। संकरी गली हो या चौड़ा रास्ता। यहां तक कि नगर निगम से लेकर किसी भी सरकारी कार्यालय तक में श्वान झुंड के रूप में देखे जा सकते हैं। हालत यह है कि शहर में श्वानों की संख्या कम होने की जगह लगातार बढ़ती ही जा रही है। नतीजा श्वान राह चलते लोगों विशेष रूप से महिलाओं व बच्चों को अपना शिकार बना रहे हैं। जिससे लोगों में श्वानों के प्रति दहशत लगातार बढ़ रही है। गत दिनों भी बजरंग नगर में श्वानों द्वारा एक बालक को काटने की घटना हो चुकी है।
निगम ने लाखों रुपए खर्च कर बनवाई श्वान शाला
शहर में श्वानों की समस्या के समाधान की मांग लम्बे समय से की जा रही थी। इसे देखते हुए नगर निगम कोटा उत्तर व दक्षिण की ओर से लाखों रुपए खर्च कर बंधा धर्मपुरा में श्वानशाला बनवाई। कोटा उत्तर की श्वानशाला पर करीब 75 लाख रुपए और कोटा दक्षिण की श्वान शाला पर 50 लाख रुपए खर्च हुए। कोटा उत्तर की श्वानशाला में श्वानों को रखने के 125 कैनल व कोटा दक्षिण की श्वानशाला में 33 कैनल हैं। साथ हीआॅपरेशन थियेटर भी बनाया हुआ है। इसके बाद निगम ने एनिमल वेलफेयर सोसायटी को श्वानों को पकड़कर उनका बधियाकरण व टीकाकरण करने का टेंडर दिया। उस पर भी हर साल लाखों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। लेकिन न तो श्वानों की संख्या कम हो रही है और न ही काटने के मामले।
आए दिन हो रहे काटने के मामले
शहर में श्वानों के काटने के मामले लगातार हो रहे हैं। साबरमती कॉलोनी, महावीर नगर, सब्जीमंडी,बजरंग नगर से लेकर कुन्हाड़ी सकतपुरा तक श्वान ही श्वान सड़कों पर देखे जा सकते है। हालत यह है कि घर के बाहर खेलते बच्चों को भी श्वान कई बार निशाना बना चुके हैं। कुछ समय पहले श्वानों ने बजरंग नगर में पूर्व पार्षद के पुत्र को गर्दन पर काट लिया था। जिससे उसकी हालत इतनी अधिक खराब हो गई थी कि उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा था।
12 हजार 645 का किया बधियाकरण
नगर निगम से प्राप्त जानकारी के अनुसार श्वानशाला में कोटा दक्षिण निगम क्षेत्र से 12 हजार 645 श्वानों का बधियाकरण व टीकाकरण किया जा चुका है। बधियाकरण के बाद तीन से चार दिन श्वानों को वहां रखकर वापस उसी स्थान पर छोड़ा जा रहा है जहां से पकड़कर लाए थे। जिससे निगम के प्रयासों का जनता को लाभ ही नहीं मिल रहा है।
राज्य सरकार ने पहले दिया आदेश, फिर लिया वापस
श्वानों की बढ़ती समस्या को देखते हुए रा’य सरकार ने कुछ समय पहले खतरनाक श्वानों को शहर से पकड़कर दूर जंगल में या बाड़े में छोड़ने के आदेश दिए थे। जैसे ही यह आदेश आया वैसे ही श्वान प्रेमी संगठनों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया। जिससे सरकार को बैकफुट पर आकर उस आदेश को वापस लेना पड़ा।
शहर से बाहर हो, तभी समाधान
शहर वासियों का कहना है कि श्वानों की समस्या गम्भीर है। इसका स्थायी समाधान होना चाहिए। भीमगंजमंडी निवासी घनश्याम नामा का कहना है कि श्वानों को बधियाकरण करके वापस छोड़ने का कोई मतलब नहीं है। इन्हें स्थायी रूप से वहीं रखा जाए। पाटनपोल निवासी घनश्याम शर्मा का कहना है कि श्वानों का इतना अधिक डर है कि उन्हें देखते ही महिलाएं घर से बाहर निकलने में डरने लगी है। बच्चे घर के बाहर नहीं खेल पाते। निगम लाखों रुपए खर्च कर रहा है लेकिन उसका लोगों को कोई लाभ नहीं हो रहा है। श्वानों को शहर से दूर किया जाना चाहिए।
इनका कहना है
श्वानों के मामले में सुप्रीम कोर्ट की गाइन लाइन की पालना करने की बाध्यता है। उसके हिसाब से ही पकड़कर बधियाकरण करने की प्रक्रिया की जा रही है निगम श्वानों को रखने, बधियाकरण व टीकाकरण और उनके खाने पर खर्चा कर ही रहा है। श्वानों को श्वानशाला में स्थायी रूप से रखकर वहीं खाना पीना दिया जाए तभी शहर वासियों को इससे छुटकारा मिलेगा। वरना साल में दो बार इनके बच्चे होते हैं। यदि किसी एरिया से 20 में से 15 का बधियाकरण कर भी दिया और शेष 5 रह गए तो साल में दो बार उनके बच्चे होने से संख्या कम होना मुश्किल है। साथ ही ये 5 से 6 माह में बड़े हो जाते हैं।
-राजीव अग्रवाल, महापौर, नगर निगम कोटा दक्षिण