जयपुर। प्रदेश में घूसखोरी करने के बाद भी घूसखोर आराम से सरकारी सेवाओं का लाभ उठाने के साथ-साथ आराम से नौकरी कर रहे हैं। इन घूसखोरों के खिलाफ संबंधित जिम्मेदार अधिकारी अभियोजन स्वीकृति जारी नहीं कर रहे हैं। भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) मुख्यालय की ओर से जारी एक रिपोर्ट की बात करें, तो प्रदेश के 53 विभागों के 553 अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति जारी करने के मामले पेण्डिंग हैं, जबकि इनमें से बड़ी संख्या में अधिकारियों और कर्मचारियों को घूस के रुपए से लाल हुए हाथों के साथ पकड़ा था और अन्य को तादाद से ज्यादा घूस लेकर इकट्ठी की गई अकूत सम्पत्ति के साथ दबोचा। ये सभी अभियोजन स्वीकृति नहीं मिलने के कारण कानून के शिकंजों से बचे हुए हैं।
अन्य राज्यों से आकर यहां ली घूस
देश के अन्य राज्यों कनार्टक, महाराष्ट्र, गुजरात और पश्चिम बंगाल पुलिस ने राजस्थान में आकर घूस ली और पकड़े गए। इसके बाद एसीबी ने यहां मुकदमा दर्ज कर अभियोजन स्वीकृति मांगी लेकिन नहीं मिली। कर्नाटक पुलिस की एक, गुजरात पुलिस की दो, पश्चिम बंगाल पुलिस की एक और महाराष्ट्र पुलिस की तीन अभियोजन स्वीकृति बाकी है।
इनका भी हाल खराब
प्रदेश के जल संसाधन व जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग में सात, कृषि, बाल अधिकारिता विभाग, शिक्षा सीजीएसटी में 6-6, श्रम विभाग एवं श्रम कौशल नियोजन एवं उद्यमिता, पीडब्ल्यूडी, सहकारिता विभाग में 5-5, आबकारी, विश्वविद्यालय, महालेखा, एक्स सर्विसमेन में 4-4, रेल, पंजीयन एवं मृद्रांक विभाग, उद्योग, राजस्थान राज्य पथ परिवहन निगम में 3-3, उपनिवेश, नगरीय विकास विभाग, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता, खनिज, खाद्य एवं आपूति, वाणिज्यिक कर विभाग, नारकोटिक्स विभाग में 2-2, जल ग्रहण विकास एवं भू संरक्षण, पशुपालन, आर्थिक एवं सांख्यिकी, रोजमार्टा टेक्नोलॉजी प्रा.लि, राजस्थान खादी एवं ग्रामोद्योग, आरएसआरडीसी, गृह रक्षा, डेयरी, केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड, बीवीजी, आयकर विभाग, बैंक, दी ओरियन्टल इंश्योरेस कम्पनी, एसबीआई जनरल इंश्योरेंस कम्पनी, भविष्य निधि केन्द्रीय और मैसर्स दिव्या एन्टरप्राइजेज में 1-1 घूसखोर के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति जारी नहीं हुई है।
यह होती है अभियोजन स्वीकृति
यदि कोई अधिकारी या कर्मचारी घूस लेते हुए ट्रेप किया जाता है तो उसके खिलाफ चालान पेश करने के लिए संबंधित सक्षम अधिकारी से अभियोजन स्वीकृति मांगी जाती है। यदि गिरफ्तार नहीं हुआ है तो अभियोजन स्वीकृति संबंधित विभाग के सक्षम अधिकारी से चालान पेश करने से पूर्व मांगी जाती है। यदि कोई अधिकारी या कर्मचारी घूस लेते हुए गिरफ्तार हुआ है तो कोर्ट में पहले चालान पेश कर देते हैं और अभियोजन स्वीकृति बाद में मांगी जाती है। इस दौरान विभाग तय करता है कि उसने जो घूस की राशि ली है वह विभाग की कोई शुल्क राशि तो नहीं थी। जब रिश्वत की राशि तय हो जाती है तो अधिकारी परमीशन देते हैं और उसके बाद कोर्ट में ट्रायल शुरू हो जाता है।