- बीजेपी और संघ से बिना मजबूत फौज के जीतना मुश्किल
Leader Of Opposition In Lok Sabha, अजीत मेंदोला, (आज समाज), नई दिल्ली: लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता राहुल गांधी एक बार फिर बीजेपी को पिछड़ों की राजनीति की पिच पर खिलवाने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि कांग्रेस का यह दांव हरियाणा चुनाव में बिल्कुल नहीं चला था। पार्टी को वहां पर हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव में राहुल गांधी ने एक बार संविधान बचाओ का नारा दे पिछड़ों की राजनीति का कार्ड खेलना शुरू कर दिया है।
कांग्रेस को लगता है कि लोकसभा चुनाव में 99 सीटें इसी मुद्दे के चलते आई। कांग्रेस ने कई राज्यों में हुई करारी हार का विश्लेषण किया होता तो शायद राहुल पिछड़ों की राजनीति से बचते है, क्योंकि कांग्रेस हिंदी और गैर हिंदी बेल्ट वाले अधिकांश राज्यों में बीजेपी से सीधे मुकाबले में हारी थी। लोकसभा में उम्मीद से कम सीटें आने के बाद बीजेपी ने हरियाणा में अपनी पूरी रणनीति बदल दी थी। संघ खुलकर चुनाव प्रबंधन देखने लगा था।
बीजेपी ने लोकसभा की गलतियों से सबक ले एक जुट हो कर चुनाव लड़ा।जबकि कांग्रेस संविधान के भरोदर और अपने पुराने ढर्रे पर चुनाव लड़ी और हार गई। बीजेपी ने तभी राहुल की पिछड़ों की राजनीति का तोड़ बटोगे तो कटोगे जैसे नारों से निकाल लिया था।हरियाणा चुनाव में बीजेपी का बटोगे तो कटोगे का नारा चला भी है। यही नहीं बीजेपी ने आरक्षण पर राहुल के विदेश में दिए बयान पर घेर कांग्रेस पर आरक्षण खत्म करने का आरोप लगा हरियाणा में पिछड़ों,दलितों का वोट साधने में सफलता भी पाई थी।
इसके बाद भी राहुल गांधी ने एक बार फिर पिछड़ों की राजनीति का कार्ड खेलना शुरू कर दिया।उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बटोगे तो कटोगे नारे के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक रहोगे तो सेफ रहोगे नारे को आगे कर एक तरह से हिंदुत्व के मुद्दे को ही धार दे दी है।बीजेपी भी जानती है जब तक हिंदू एक जुट रहेगा वह ताकतवर रहेंगे।कांग्रेस इस बात को नहीं समझ पा रही है कि वह हिंदुओं को जितना बांटने की कोशिश करेगी बीजेपी उतना ही उन्हें एक जुट करने के सभी जतन करेगी।
इसके चलते आम जन से जुड़े महंगाई,बढ़ती बेरोजगारी,भ्रष्टाचार और किसानों के मुद्दे गायब हो जाएंगे। राहुल गांधी ने झारखंड में आदिवासियों को लेकर वनवासी जैसे जो भी मुद्दे उठाए छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा के चुनाव के समय भी उठा चुके हैं।इन मुद्दों का पार्टी को कोई विशेष लाभ नहीं मिला।यही नहीं जातीय जनगणना और पिछड़ों की राजनीति भी राहुल ने पिछले साल हुए विधानसभा चुनावों में खूब की लेकिन कोई फायदा पार्टी को नहीं मिला।लोकसभा के परिणामों को लेकर भी राहुल गलतफहमी में जी रहे हैं क्योंकि एक दम बाद हुए हरियाणा जैसे राज्य में पिछड़ों की राजनीति का मुद्दा फिट गया।
दरअसल कांग्रेस के रणनीतिकारों को लगता है कि बीजेपी के हिंदुत्व के मुद्दे पर एक जुट हुए हिंदुओं जाति के आधार पर राजनीति कर बांटा जा सकता है। राहुल उस रास्ते पर चल रहे हैं जो कांग्रेस की नीतियों के एक दम खिलाफ रहा है। उनकी दादी इंदिरा गांधी ने ही नारा दिया था न जात पर न पात मोहर लगेगी हाथ पर। इसी नारे को उनके पिता राजीव गांधी ने आगे बढ़ाया था।लेकिन राहुल गांधी ने लगातार दो लोकसभा और कई विधानसभा चुनाव हारने के बाद इस साल हुए आम चुनाव में जाति की राजनीति को अपना प्रमुख हथियार बना लिया।कई तरह की चचार्एं।
इंडिया गठबंधन के गठन के समय राजद नेता लालू यादव और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राहुल को पिछड़ों की राजनीति करने की सीख दी।दोनों के अपने स्वार्थ थे।लालू अपने बेटे तेजस्वी को सीएम बना नीतीश को दिल्ली भेजना चाहते थे।बात बनने के बजाए बिगड़ गई। नीतीश वापस राजग में चले गए।राहुल ने उनकी सीख को अपने मन में बिठा लिया। दूसरी चर्चा यह है कि एक अमरीकी एनजीओ ने राहुल को एक सर्वे कर बताया है कि देश में पिछड़ों की राजनीति फायदे मंद है। राहुल उसी रास्ते पर चल पड़े और फंस गए।पिछड़ों की राजनीति के चक्कर में अगड़ी छिटक कर बीजेपी के साथ चली गई।
पिछड़ी जाति अपनी सुविधानुसार राज्यों में वोट करती है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े राज्यों में पिछड़ों का वोट पूरी तरह से बंटा हुआ है।रीजनल पार्टियों के साथ बीजेपी को भी मिलता है।कांग्रेस के हिस्से में कम ही आता है।लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी जातीय राजनीति के चलते नहीं बल्कि आपसी खींचतान से हारी थी।कांग्रेस और सपा उसे पिछड़ों की राजनीति से जोड़ने लगे।इसी तरह राजस्थान में भी बीजेपी को आपसी झगड़ों के चलते नुकसान हुआ।
देखा जाए तो पिछड़ों की राजनीति की असल परीक्षा अब उत्तर प्रदेश के उप चुनाव में हो जायेगी।राहुल ने अब जिस तरह फिर से संविधान और जाति की राजनीति करनी शुरू की है उसके पीछे उन्हें लगता है कि झारखंड और महाराष्ट्र में ओबीसी, एसटी जैसी जातियों को साधा जा सकता है।मुस्लिम वोट इंडिया गठबंधन को अपने आप ही मिलेगा।कांग्रेस इस बात का मंथन नहीं किया कि ओबीसी का सबसे बड़ा चेहरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद हैं। एसटी वोट कभी एक तरफा नहीं पड़ता।
दूसरी सबसे अहम बात संघ हरियाणा की तरह झारखंड और महाराष्ट्र में पूरी तरह से एक एक सीट पर काम कर रहा है।संघ अगर सक्रिय है तो बीजेपी समर्थित वोट हर हाल में घर से निकलेगा और बीजेपी का बूथ प्रबंधन कांग्रेस से बहुत मजबूत है।कांग्रेस संगठन और बूथ प्रबंधन पर कभी काम ही नहीं करती। कांग्रेस को लगता जनता जिस दिन चाहेगी अपने आप वोट करेगी। भ्रमित करने की राजनीति पर कांग्रेस ज्यादा भरोसा करती है,जैसे की अभी कर रही है।
हिंदुओं को बांटो और राज करो।कांग्रेस इस बात का मंथन नहीं कर रही है कि अब 70-80 के दशक का समय नहीं रहा।सामने दुनिया की संगठनात्मक रूप से सबसे मजबूत माने जाने वाली पार्टी बीजेपी है। बीजेपी के पास बिना स्वार्थ काम करने वाला संघ का बड़ा नेट वर्क है।जो उसने 50 साल से ज्यादा समय में तैयार किया है।दूसरी सबसे अहम आज की युवा पीढ़ी को जातपात में बहुत रुचि भी नहीं रही। राहुल गांधी को यह समझना होगा कि गांधी नाम का जादू बहुत कम हो गया है।वह तभी मजबूत होगा जब सशक्त संगठन होगा। जिसमें नेता अपने हितों को त्याग पार्टी पर फोकस करेंगे।
वर्ना राजस्थान और हरियाणा जैसे जीते जाने वाले राज्यों में हार होती रहेगी।महाराष्ट्र और झारखंड जहां पर चुनाव होने है ऐसी राजनीति हो रही है जहां पर यह कह पाना कि किसी पार्टी बहुमत मिलेगा कह पाना कठिन होगा।कांग्रेस भले ही गठबंधन के भरोसे जीत की उम्मीद कर रही है,लेकिन आरक्षण और जाति की राजनीति भारी पड़ सकती है।क्योंकि बीजेपी हिंदुओं की एक जुटता के लिए किसी भी हद तक जा सकती है।बीजेपी पीएम मोदी और योगी के नारों को आगे बढ़ हिंदुओं को साधने लगी है।
साथ ही जम्मू कश्मीर में उमर अब्दुल्ला की सरकार ने अनुच्छेद 370 की बहाली के समर्थन में प्रस्ताव ला कांग्रेस को संकट में डाल दिया है। उमर अब्दुल्ला का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा कांग्रेस सवालों के घेरे में आ गई।बीजेपी कांग्रेस को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है।महाराष्ट्र और झारखंड में बीजेपी कश्मीर का मुद्दा उठा उसे सीधे राष्ट्रवाद से जोड़ेगी।कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं होगा। जाती की राजनीति का तोड़ बीजेपी हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण कर देगी।
महाराष्ट्र में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बटोगे तो कटोगे जैसे नारे पर महायुति के सहयोगी एनसीपी नेता अजीत पंवार ने एतराज जरूर जताया है,लेकिन बिना हिंदुओं के वह भी नहीं जीत पाएंगे।मुस्लिम वोट का बंटना तय है।बीजेपी और संघ जब मिल कर मैदान में उतरते हैं तो फिर उनके यहां कोई नेता और गुटबाजी नहीं होती है।जबकि कांग्रेस को अंदर बाहर दोनों जगह एकता के लिए जूझना पड़ता है।इसलिए राहुल गांधी दूसरों के कहने पर जो रास्ता पकड़े हैं उस पर फिर मनन करें,क्योंकि कांग्रेस रीजनल नहीं राष्ट्रीय पार्टी है।
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