Assembly Poll Results, राकेश शर्मा, आज समाज डेस्क: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव व उत्तर प्रदेश /बिहार उपचुनाव, भारत की जनता का विभाजनकारी शक्तियों को जवाब है। इस वर्ष मई में आम चुनाव के नतीजों के बाद जब भाजपा को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था, तब मैंने लिखा था कि झूठ, भ्रम, फरेब, और मक्कारी की हांडी बार- बार नहीं चढ़ती और हरियाणा, महाराष्ट्र, के विधानसभा नतीजों व यूपी/बिहार के उपचुनाव के नतीजों ने मेरे आंकलन पर मुहर लगा दी है।
विजय, बाल बुद्धि राहुल गांधी के लिए सबक
यह भाजपा-एनडीए की विजय, बाल बुद्धि राहुल गांधी को (वैसे वह इतनी सारी हारों के बाद सबक लेने को तैयार नहीं हैं) के लिए सबक है, जो लोकसभा में 99 सीट जीतकर अपने आपको लंगड़े घोड़े के विजय रथ पर सवार होकर देश-विदेश में अपने आपको भारत का स्वघोषित सुपर प्रधानमंत्री बनकर ऊल-जलूल वक्तव्य देते हुए अपने वैचारिक खोखलेपन का परिचय स्वयं दे रहे थे।
अखिलेश यादव और उनकी पार्टी 37 सीटें जीतने के बाद देश भर में कहती फिर रही थी की हमने भाजपा को हरा दिया, फेजाबाद (अयोध्या) की सीट जीत कर हिंदुत्व को हरा दिया, भगवा को हरा दिया और अपने आपको देश का भावी प्रधानमंत्री घोषित करने में लगे थे। साथ ही ये लोग मुस्लिम तुष्टिकरण की सारी हदें पार कर गये थे। अति उत्साह में सत्ताईस का सत्ताधीश के पोस्टर लगवा कर उत्तर प्रदेश के अधिकारियों को डाँटने लगे थे।
अब 9 में से सात उपचुनाव हारकर पीडीए की हवा हवाई हो गई, हिंदू एकता विजयी हो गई, अखिलेश भूल गए पीडीए भी पहले हिंदू हैं। लालू, तेजस्वी भी राहुल और अखिलेश की तरह जातीय जनगणना के पैरोकार बन रहे थे में चारों सीट हार गये। क्यूँकि बिहार में भी हिंदुओं को जातियों में बाँट कर कोई भी बिहारी गजवाए हिन्द को आमंत्रण नहीं देना चाहता। ममता, केजरीवाल, अबुदुल्ला परिवार, उद्धव, शरद पवार, ओवेसी कमोबेश एक ही बात कह रहे थे की मोदी हार गया, उसके कंधे झुक गए, अब हम सत्ता में आ रहे हैं। इन चुनावी नतीजों ने बता दिया की भारत गुमराह होने वाला देश नहीं है , एक बार भूल कर सकता है बार बार नहीं।
उद्धव ठाकरे को भी महाराष्ट्र की जनता ने बता दिया की बालासाहेब ठाकरे का असली वारिस कांग्रेस से हाथ मिलाने वाला नहीं हो सकता। एकनाथ शिंदे को उनकी विरासत का उतराधिकारी मराठियों ने चुना है।
उद्धव का भाँपूँ संजय राउत ने तो हद ही कर दी वह कह रहा है धांधली हुई है। हाँ धांधली आपकी पार्टी बी औरंगजेब को महान बताने में जी है। वीर सावरकर को गाली देने वालों की गोद में बैठकर की है। तुष्टिकरण करके की है।
उधर फैजाबाद के लोकसभा सदस्य अवधेश प्रसाद सिंह को अखिलेश और राहुल कंधे पे बैठाकर घूम घूम ‘ं१ अयोध्या का राजा बताकर जलूस निकाल रहे थे, जनता ने गलती से मिली जीत की हेंकड़ी निकाल दी है।
राहुल , लालू, दसवीं फैल तेजस्वी अपने पिता की बेईमानी से कमाई दौलत के नशे में देश को जातियों में बाँटना चाह रहे थे। बिहार में चारों सीट हारकर इन तीनों को अभी कोई सबक मिलेगा या नहीं कह नहीं सकते।
इंडी खंडित, विखंडित, अर्धविक्षिप्त गठबंधन की इस हालात का विश्लेषण करें तो हम देखेंगे कि नरेंद्र मोदी का नारा एक रहेंगे, तो सेफ रहेंगे, योगी का नारा बटेंगे तो कटेंगे हर जगह बहुत काम कर गया। देश की आत्मा को छू गया। देश 1947 में विभाजन विभीषिका देख चुका है, 1990 में कश्मीर से हिंदुओं का पलायन देख चुका है, देश में जहां जनसांख्यिकी बदलाव हुए हैं वहाँ हिंदुओं की स्थिति देख रहा है, लगभग शरिया कानून ऐसी जगहों पर अपरोक्ष रूप से लागू है।बांग्लादेश में हाल ही की सत्ता पलट के बाद हिंदुओं की स्थिति देख रहा है।
हिंदुओं के धार्मिक जलूसों पर पथराव , आगजनी, हत्याएँ देख रहा है, वोट जेहाद की अपील देख रहा है, तौफीक रजा और नोमानी जैसे मुस्लिम नेताओं के भड़काऊ भाषण सुन रहा है, वक़्फ बोर्ड में सुधारों का विरोध देख रहा है, चुनाव के मध्य में जम्मू कश्मीर में कांग्रेस समर्थित सरकार का 370 को पुन: लागू करने का प्रस्ताव देख चुका है।
चुनाव के दौरान कांग्रेस के वयोवृद्ध अध्यक्ष खड़गे का भाजपा और संघ को जहरीला साँप कहकर मारने की बात सुन चुका है, राहुल का अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन को नाच गाना कहकर बेइज्जत करने का प्रयास देख चुका है, इंडी के एक भी नेता का अयोध्या ना जाकर हिंदुओं को चिढ़ाने का भाव भी देख चुका है। पूरे चुनाव में मोदी और भाजपा को निम्न स्तर की गालियाँ सुन चुका है।
इन सभी बातों ने भारत के हिंदुओं की सुप्त आत्मा को जगाकर देश के विकास के लिए वोट करने को प्रेरित किया जिसका नतीजा हम सबके सामने हैं। एक तरह जहां मोदी जी हर जगह विकसित राष्ट्र की बात कर रहे थे, सबका साथ, सबका विकास की बात कर रहे थे उधर खंडित विपक्ष सिर्फ़ मोदी और भाजपा को हटाने की बात कर रहे थे, मीडिया को गालियाँ देकर गोदी मीडिया कह रहे थे।
झारखंड में सांत्वना पुरस्कार, कारण राहुल नहीं
हां झारखंड में जरूर सांत्वना पुरस्कार मिला है लेकिन उसका कारण राहुल नहीं है। उपरोक्त विश्लेषण में विपक्षी हार के जवाब भी निहित हैं लेकिन यदि सिर्फ़ आत्मविश्लेषण के नाम पर शोक सभा कर विसर्जन ही करना है , सीख नहीं लेनी तो विदेशी प्रायोजक भी एक दिन थक जाएँगे और सोचेंगे कि गलत घोड़े पर दांव लगा दिया।
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